Sunday 19 June 2011

जन्म और मृ्त्यु का रहस्य

                                                  जन्म और मृ्त्यु का रहस्य अनन्तकाल से ही मानव मन की जिज्ञासा का विषय बना रहा है। प्रत्येक व्यक्ति  अपनी बुद्धि सामर्थ्य अनुसार ही उसका उत्तर खोजने का प्रयास  करता रहा है। तलाश जारी है और शायद युगांत तक ये तलाश यूँ ही जारी रहेगी । न मालूम कि अपनी जिज्ञासा के अज्ञात क्षितिज तक चलने की ये कैसी विवशता है, जो कि मुझे भी अक्सर इस तलाश में भागीदार बनने को प्रेरित करती रही है। अपनी इस तलाश में मै जितना भी खोज पाया हूँ,उसे समय समय पर अपने आलेखों के जरिये आप लोगों के साथ बाँटता रहा हूँ।  पुनर्जन्म आधारित अपने एक लेख में मैने ये स्पष्ट करने का प्रयास किया था कि भारतीय वेदांत और वैज्ञानिक दृ्ष्टिकोण अनुसार पुनर्जन्म का क्या रहस्य है। आज इस लेख के जरिए इस बारें में बात करते हैं कि पुनर्जन्म की वैज्ञानिक संभावनाएं क्या कहती हैं।   

भारतीय दार्शनिकों को तो पुनर्जन्म स्वीकारने में कभी परेशानी नहीं हुई किन्तु विज्ञान जगत का स्वीकार करना ही भारतीय दर्शन की विजय होगी। विज्ञान की ये स्पष्ट धारणा है कि इस सृ्ष्टि में कभी भी कुछ पूर्णत: समाप्त नहीं होता,उसका रूप परिवर्तित हो जाता है। तो क्या यह संभव नहीं कि जीवन भी समाप्त न होकर परिवर्तित हो जाए।
"यह समस्त जीवन जगत तरंगात्मक है। जीवन मनोभौतिक तरंगो का समानान्तरिकरण है। इसका नियोजन मनुष्य की शारीरिक या मानसिक मृ्त्यु का कारण है।"
विज्ञान जगत भी इस बात को स्वीकार करता है कि जीवन तरंगात्मक है। E.C.G. भी इसी बात का प्रमाण है।  तरंग ही जीवन है और सीधी रेखा मृ्त्यु की सूचक है।
जब हम यह मानकर चलते हैं कि तरंगे कभी समाप्त नहीं होती तो हमें यह भी मानना ही पडेगा कि मनुष्य की मृ्त्यु के पश्चात उसकी मनस तरंगे ब्राह्मंड में ही विचरण करती रहती है। और जब किसी भौतिक तरंग (शरीर)  से उसका समानान्तरिकरण हो जाता है तो यह उस मनस तरंग का "पुनर्जन्म" हुआ।
यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि आधुनिक विज्ञान जगत यह मान रहा है कि शरीर की मृ्त्यु के पश्चात मानव मस्तिष्क लगभग 5 या 6 घण्टे तक जीवित रहता है। मेरे शब्दों में मनस की अन्तर्यात्रा संभव है। हिन्दू शैली में मृ्तक के अन्तिम संस्कार के समय कपालक्रिया के द्वारा मस्तिष्क की मृ्त्यु को भी पूर्णरूप से सुनिश्चित कर लेते हैं ताकि आत्मा मुक्त हो जाए, भटके नहीं।
किसी भी पद्धति का अन्तिम संस्कार शरीर को नष्ट तो कर ही देता है। अत: यह तो निश्चित है कि शरीर का पुनर्जन्म नहीं होता किन्तु किन्ही विशेष परिस्थितियों में मनस या तरंगों का पुनर्जन्म तो हो ही सकता है। कोई आवश्यक नहीं कि ईसा,बुद्ध या राम-कृ्ष्ण इत्यादि की जीवन तरंगें इस पृ्थ्वी पर ही जन्म लें। हो सकता है कि इस अनंत ब्राह्मंड में आज हजारों लाखों वर्षों बाद उनका जन्म किसी जीवित ग्रह पर हो रहा हो। अब मान लीजिए विज्ञान इस बात को स्वीकार नहीं करता,किन्तु क्या इसे अस्वीकार कर सकता है? यदि विज्ञान इसे अस्वीकार करता है तो फिर उसे अपने उस कथन को असत्य स्वीकार करना  होगा कि जीवन तरंगात्मक है।

अक्सर देखने सुनने में आता है कि अधिकांशत: पुनर्जन्म का स्मरण करने वाले शिशु ही होते हैं ।  इसका कारण सिर्फ इतना है कि निर्बोध शिशुवस्था में उनके संस्कारहीन कच्चे मन से कोई मनस तरंग सम्पर्क स्थापित कर लेती है।  किन्तु जब उनका मस्तिष्क अपने ज्ञान और अनुभव को स्वयं पर अंकित करने में सक्षम हो जाता है तो शनै: शनै: वो स्मृ्तियाँ विलुप्त होने लगती हैं।
Pandit Gaurav Acharya (astrologer)
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