Tuesday 20 September 2011

लाल किताब के सिद्ध टोटके


नानक दुखिया सब संसार ! आज संसार में हर आदमी दुखी है ! चाहे अमीर हो या गरीब, बडा हो या छोटा ! हर इंसान को कोई न कोई परेशानी लगी रहती है ! ज्योतिष में इसके लिए कई उपाय सुझाए गए हैं ! जिनको विधि पूर्वक करके हम लाभ उठा सकते हैं !
लाल किताब उत्तर भारत में खास कर पंजाब में बहुत प्रसिद्ध है ! अब इसका प्रचार धीरे-धीरे पूरे भारत में हो रहा है ! इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण इसके आसान, सस्ते और सटीक उपाय हैं ! इसमें कई उपाय ग्रहों की बजाय लक्षणों से बताये जाते हैं ! आपके लाभ के लिए कुछ सिद्ध उपाय निम्न प्रकार से हैं –
1. यदि आपको धन की परेशानी है, नौकरी मे दिक्कत आ रही है, प्रमोशन नहीं हो रहा है या आप अच्छे करियर की तलाश में है तो यह उपाय कीजिए :
किसी दुकान में जाकर किसी भी शुक्रवार को कोई भी एक स्टील का ताला खरीद लीजिए ! लेकिन ताला खरीदते वक्त न तो उस ताले को आप खुद खोलें और न ही दुकानदार को खोलने दें ताले को जांचने के लिए भी न खोलें ! उसी तरह से डिब्बी में बन्द का बन्द ताला दुकान से खरीद लें ! इस ताले को आप शुक्रवार की रात अपने सोने के कमरे में रख दें ! शनिवार सुबह उठकर नहा-धो कर ताले को बिना खोले किसी मन्दिर, गुरुद्वारे या किसी भी धार्मिक स्थान पर रख दें ! जब भी कोई उस ताले को खोलेगा आपकी किस्मत का ताला खुल जायगा !
2. यदि आप अपना मकान, दुकान या कोई अन्य प्रापर्टी बेचना चाहते हैं और वो बिक न रही हो तो यह उपाय करें :
बाजार से 86 (छियासी) साबुत बादाम (छिलके सहित) ले आईए ! सुबह नहा-धो कर, बिना कुछ खाये, दो बादाम लेकर मन्दिर जाईए ! दोनो बादाम मन्दिर में शिव-लिंग या शिव जी के आगे रख दीजिए ! हाथ जोड कर भगवान से प्रापर्टी को बेचने की प्रार्थना कीजिए और उन दो बादामों में से एक बादाम वापिस ले आईए ! उस बादाम को लाकर घर में कहीं अलग रख दीजिए ! ऐसा आपको 43 दिन तक लगातार करना है ! रोज़ दो बादाम लेजाकर एक वापिस लाना है ! 43 दिन के बाद जो बादाम आपने घर में इकट्ठा किए हैं उन्हें जल-प्रवाह (बहते जल, नदी आदि में) कर दें ! आपका मनोरथ अवश्य पूरा होगा ! यदि 43 दिन से पहले ही आपका सौदा हो जाय तो भी उपाय को अधूरा नही छोडना चाहिए ! पूरा उपाय करके 43 बादाम जल-प्रवाह करने चाहिए ! अन्यथा कार्य में रूकावट आ सकती है !
3. यदि आप ब्लड प्रेशर या डिप्रेशन से परेशान हैं तो :
इतवार की रात को सोते समय अपने सिरहाने की तरफ 325 ग्राम दूध रख कर सोंए ! सोमवार को सुबह उठ कर सबसे पहले इस दूध को किसी कीकर या पीपल के पेड को अर्पित कर दें ! यह उपाय 5 इतवार तक लगातार करें ! लाभ होगा !
4. माईग्रेन या आधा सीसी का दर्द का उपाय :
सुबह सूरज उगने के समय एक गुड का डला लेकर किसी चौराहे पर जाकर दक्षिण की ओर मुंह करके खडे हो जांय ! गुड को अपने दांतों से दो हिस्सों में काट दीजिए ! गुड के दोनो हिस्सों को वहीं चौराहे पर फेंक दें और वापिस आ जांय ! यह उपाय किसी भी मंगलवार से शुरू करें तथा 5 मंगलवार लगातार करें ! लेकिन….लेकिन ध्यान रहे यह उपाय करते समय आप किसी से भी बात न करें और न ही कोई आपको पुकारे न ही आप से कोई बात करे ! अवश्य लाभ होगा !
5. फंसा हुआ धन वापिस लेने के लिए :
यदि आपकी रकम कहीं फंस गई है और पैसे वापिस नहीं मिल रहे तो आप रोज़ सुबह नहाने के पश्चात सूरज को जल अर्पण करें ! उस जल में 11 बीज लाल मिर्च के डाल दें तथा सूर्य भगवान से पैसे वापिसी की प्रार्थना करें ! इसके साथ ही “ओम आदित्याय नमः “ का जाप करें !
नोट :
1. लाल किताब के सभी उपाय दिन में ही करने चाहिए ! अर्थात सूरज उगने के बाद व सूरज डूबने से पहले !
2. सच्चाई व शुद्ध भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए !
3. किसी भी उपाय के बीच मांस, मदिरा, झूठे वचन, परस्त्री गमन की विशेष मनाही है !
4. सभी उपाय पूरे विश्वास व श्रद्धा से करें, लाभ अवश्य होगा !


Monday 5 September 2011

कैसे बनता है कालसर्प दोष – How Kaalsarp Dosha forms?

विधाता हमारे सभी कर्मों को देखता है. हमारे कर्मों के अनुसार ही वह हमारे जीवन का लेख लिखता है. विधाता का लेख हम कुण्डली से जान पाते हैं. कुन्डली में शुभ योगों की मौजूदगी हमारे शुभ कर्मों का फल होता है और अशुभ योग बुरे कर्मों का फल. कालसर्प दोष (कालसर्प दोष) भी ऐसा ही योग है जो पूर्व जीवन में किये गये हमारे कर्मों से इस जन्म में हमारी कुण्डली में निर्मित होता है. इस योग में मूल रूप से दो ग्रह राहु केतु की भूमिका प्रमुख होती है. इन्हीं दोनों ग्रहों के प्रभाव से कालसर्प दोष बनता है.

राहु केतु और काल सर्प दोष (Rahu, Ketu and Kalsarp Dosha)
राहु केतु अशुभ और पीड़ादायक ग्रह माने जाते हैं. धर्मशास्त्र एवं ज्योतिषशास्त्र में कई स्थान पर यह उल्लेख आया है कि यह दोनों ग्रह भले दो हैं परंतु वास्तव में यह एक ही शरीर के दो भाग हैं. इनका शरीर सर्प के आकार का है राहु जिसका सिर है और केतु पूंछ. अंग्रेजी भाषा में राहु को ड्रैगन हेड और केतु को ड्रैगन टेल कहा गया है. ज्योतिषशास्त्र में जिन नौ ग्रहों की चर्चा की जाती है उनमें राहु और केतु ही मात्र ऐसे ग्रह हैं जो सदैव वक्री चाल चलते हैं शेष सभी ग्रह मार्गी और वक्री होते रहते हैं.

सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि ये सभी ग्रह जब गोचर में भ्रमण करते हुए राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं उस समय जिस व्यक्ति का जन्म होता है उसकी कुण्डली में कालसर्प योग बनता है. यह योग अशुभ फलदायक होने के कारण कालसर्प दोष कहलाता है. इस दोष की चर्चा जैमिनी, पराशर, वराहमिहिर, बादरायण, गर्ग एवं बादरायण ऋषियों ने भी किया है. राहु केतु के बीच में आ जाने के कारण शेष सातों ग्रहों की शक्ति कमज़ोर पड़ जाती है जिससे वह अपना पूर्ण शुभ फल नहीं दे पाते हैं. 

अपनी कुंडली में कालसर्प दोष चैक कीजिये "Check Kalsarp Dosha in Your Kundli" एकदम फ्री

इस दोष के विषय में विद्वानों ने यह भी कहा है कि जब सातों ग्रहों में से कोई भी एक या दो ग्रह राहु और केतु के चक्र से बाहर निकल आते हैं तब कालसर्प योग नहीं बनता है. लेकिन, इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि जो ग्रह राहु केतु के चक्र से बाहर हों उनका अंश राहु केतु से अधिक होना चाहिए। यदि, उन ग्रहों का अंश राहु केतु से कम है तो कुण्डली कालसर्प दोष से प्रभावित ही मानी जाएगी. कालसर्प दोष के विषय में कुछ ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है कि कालसर्प दोष की जांच करते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जन्मपत्री में यदि राहु केतु द्वितीय, षष्टम, अष्टम या एकादश में हो और सभी एक ही तरफ एक गोलर्द्ध में हो तब कालसर्प दोष मानना चाहिए. जबकि, सातों ग्रहों एक ही ओर इसके विपरीत दिशा में हों तब कालसर्प दोष की बजाय अर्धचन्द्र योग बनता है.

कालसर्प दोष निर्माण के विषय में आधुनिक मत
आधुनिक समय के कुछ ज्योतिषी इस योग के निर्माण के विषय में यह भी कहते हैं कि शुभ ग्रहों का कम अंशों पर होना, शुभ ग्रहों का नीच स्थिति में होना, पाप ग्रहों से दृष्ट होना, केन्द्र एवं त्रिकोण में स्थित ग्रहों का किसी भी भी तरह से अशुभ होना, शुभ ग्रहों का अशुभ ग्रहों से दृष्ट होना भी कालसर्प दोष के समान ही फल देता हे अत: इन्हें भी कालसर्प दोष के रूप में मानना चाहिए.

नवग्रह रत्न पुखराज और हीरा (Gemstone Yellow Sapphire and Diamond)

नवग्रहों में अद्भुत शक्तियां है जिसके कारण इसे देवताओं के समान आदर दिया गया है.यह दवा की भांति व्यक्तियों को पीड़ा से उबारने में सक्षम होता है.इनमें कमज़ोर ग्रहों को बलवान बनाने की क्षमता होती है जिससे असंभव को भी संभव करने में भी राशि रत्न कारगर होते हैं.

पुखराज की ज्योतिषीय विशेषता Astrological Characteristics of Yellow Sapphire 
बृहस्पति ग्रह का रत्न पुखराज पीली आभा लिये होता है.यह गहरा पीला, हल्का पीला एवं सफेद भी होता है.छूने में ठोस, चिकना, चमकीला, दाग़ धब्बा रहित पुखराज उत्तम होता है.दूध में रात भर रखने से असली पुखराज क्षीण नहीं होता है और न ही इसका रंग फीका होता है.पुखराज धारण करने से पहले अच्छी तरह जांच परख लेना चाहिए कि रत्न दोष रहित हो.

पुखराज धारण करने से लाभ Astrological Benefits of wearing Yellow Sapphire
जिस व्यक्ति की कुण्डली में बृहस्पति नीच का होता है अथवा कमजोर होता है उनके लिए पुखराज धारण करना लाभप्रद होता है.पुखराज अध्यात्म, सत्यता, लनशीलता और सजगता का प्रतीक होता है.प्रेमियो के लिए यह भाग्यशाली रत्न माना जाता है.मानसिक शांति एवं आत्मिक शांति के लिए भी यह रत्न लाभकारी होता है.इस रत्न को धारण करने से वाणी सम्बन्धी दोष एवं गले की पीड़ा से राहत मिलती है.प्राचीन यूनान में इसे अपोलो देवता द्वारा प्रदान किया गया माना जाता था जिसका उपयोग कई प्रकार के रोगों के ईलाज के लिए किया जाता था.ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार जिस कन्या की शादी में बार बार बाधा आ रही हो वह अगर पुखराज धारण करती हैं तो विवाह में बाधक तत्व का अंत होता है और जल्दी शादी होती है.

हीरा की ज्योतिषीय विशेषता Astrological Characteristics of Diamond
हीरा संसार का सबसे कठोर रत्न है.इसे किसी भी अन्य रत्न से खरोंचा नहीं जा सकता.हीरा जितना कठोर व चमकीला होता है उतना ही अच्छा माना जाता है.यह मुख्यत: सफेद, पीला , लाल, गुलाबी और काला होता है.मान्यताओं के अनुसार संतान की इच्छा रखने वाली महिलाओं को हीरा धारण नहीं करना चाहिए.ज्योतिषशास्त्र इस मान्यता को नही स्वीकार करता है. ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार जो स्त्री त्रिकोण हीरा धारण करती हैं उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.

हीरा धारण करने से लाभ Astrological Benefits of wearing Diamond
हीरा शुक्र का रत्न है.तुला और वृषभ राशि वाले अगर इस रत्न को धारण करते हैं तो उनका शुक्र मजबूत होता है फलत: शुक्र से सम्बन्धित सभी क्षेत्रो में उन्हें लाभ मिलता है.जिनकी कुण्डली में शुक्र कमज़ोर अथवा मंदा है उन्हें भी हीरा धारण करने से लाभ मिलता है.हीरा की विशेषता है कि इसे धारण करने वाला व्यक्ति साहसी, बुद्धिमान और उत्साही होता है.हीरा कई प्रकार के मानसिक रोगों में लाभकारी होता है.यह जहर काटने में भी सक्षम होता है.हीरा धारण करने वाले पर जादू टोने का प्रभाव नहीं होता है.रंग के अनुसार हीरा का अलग अलग प्रभाव होता है जैसे लाल और पीला हीरा राजनीति और प्रशासन से सम्बन्धित व्यक्तियो के लिए लाभप्रद होता है.सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों के लिए सफेद हीरा उत्तम होता है.

Sunday 4 September 2011

रत्न और स्वास्थ्य (Astrology Gemstones and health)

रत्न स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं. यह जरूरी नहीं कि रोग के ईलाज के लिए आप दवाईयों पर निर्भर रहें. रोग का उपचार करने से अच्छा है उनसे बचाव करना. रत्न इस कार्य में काफी उपयोगी एवं प्रभावशाली होते हैं.

माणिक्य और स्वास्थ्य (Ruby and Health)
माणिक्य सूर्य का रत्न है. माणिक्य या माणिक का रंग लाल होता है. जो व्यक्ति हृदय रोग से पीड़ित हैं अथवा निम्न रक्तचाप से पीड़ित हैं उनके लिए माणिक्य धारण करना अच्छा रहता है. आँखों के रोग एवं नेत्र की ज्योति के लिए भी इस रत्न को धारण किया जा सकता है.

मोती और स्वास्थ्य (Pearl and health)
मोती चन्द्रमा रत्न है. मोती का रंग सफेद होता है. जिनका मन बैचेन रहता है एवं मानसिक विह्वलता रहती है उन्हें मोती रत्न धारण करना चाहिए. तनाव बहुत सी बीमारियों को जन्म देता है तथा खुद भी एक बीमारी है. इस रोग से बचने हेतु मोती धारण करना फायदेमंद होता है. निराशा, श्वास सम्बन्धी रोग, सर्दी-जुकाम के लिए मोती पहनना गुणकारी होता है.

मूंगा और स्वास्थ्य (Coral and Health)
मूंगा मंगल का रत्न है. मूंगा का रंग का लाल होता है. यह रत्न व्यक्ति को जाशीला एवं उर्जावान बनाता है. किडनी के रोग के लिए मूंगा पहनना काफी फायदेमंद होता है. लकवा एवं मिर्गी के लिए भी मूंगा पहनना गुणकारी होता है. रत्न चकित्सा के अनुसार पीलिया रोग के लिए मंगल का रत्न मूगा धारण करणा चाहिए. इससे रोग में जल्दी सुधार होता है. मूंगा धारण करने वालों को पीलिया रोग होने की संभावना कम रहती है. बच्चों को मूंगा पहनाने से बालारिष्ठ रोग से बचाव होता है.

पन्ना और स्वास्थ्य (Emerald and Health)
पन्ना बुध का रत्न है. यह हरे रंग का होता है. पन्न रत्न धारण करने से त्वचा सम्बन्धी रोग से बचाव होता है. त्वचा में निखार आता है एवं दमा, खांसी जैसे रोग की संभावना कम रहती है. मिचली, अनिद्रा तथा टांसिल के लिए भी पन्ना गुणकारी होता है. इस रत्न के प्रभाव से लीवर एवं किडनी स्वस्थ रहता है. लीवर तथा किडनी के रोग से पीड़ित व्यक्ति इसे पहनें तो रोग में तेजी से सुधार होता है.

पुखराज और स्वास्थ्य (Yellow Sapphire and Health)
पुखराज गुरू का रत्न है. पुखराज का रंग पीला होता है. जो लोग मोटे हैं वह मोटापे को नियंत्रित करने के लिए तथा जो बहुत ही दुबले हैं वह सेहत में सुधार के लिए पुखराज पहन सकते हैं. इसे धारण करने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है. अल्सर एव सन्निपात रोग के लिए भी चाहें तो पुखराज धारण कर सकते हैं.

हीरा और स्वास्थ्य (Diamond and Health)
हीरा शुक्र ग्रह का रत्न है. हीरा पहनने वाले व्यक्ति के सौन्दर्य में वृद्धि होती है. शरीर में रक्त की कमी, मोतियाबिन्द तथा नपुंसकता जैसे रोग में हीरा धारण करना काफी फायदेमंद होता है. हीरा पहनने से एनीमिया, हिस्टीरिया तथा क्षय रोग से बचाव होता है.

नीलम और स्वास्थ्य (Blue Sapphire and Health)
शनि का रत्न नीलम है. नीलम नीले रंग का होता है. हड्डियो को मजबूत बनाने के लिए एवं हड्डियों के रोग में नीलम बहुत ही फायदेमंद होता है. मिर्गी, ज्वर, गठिया, एवं बवासीर के रोग में भी नीलम गुणकारी होता है. जो लोग सन्धिवात से पीड़ित हैं वह भी नीलम धारण कर सकते हैं.

गोमेद और स्वास्थ्य (Hessonite and Health)
गोमेद राहु का रत्न है. गोमेद शहद के समान भूरे रंग का होता है. पेट तथा पाचन सम्बन्धी रोग में यह रत्न बहुत ही फायदेमंद होता है. गोमेद बौद्धिक क्षमता को भी बढ़ाता है. फायलेरिया तथा बवासीर रोग से जो लोग पीड़ित हैं वह भी गोमेद पहन सकते हैं. सर्दी, कफ तथा पित्त के रोग के लिए भी राहु रत्न गोमेद पहनना फायदेमंद होता है.

लहसुनिया और स्वास्थ्य (Cat's Eye and Health)
लहसुनिया केतु का रत्न है. जो व्यक्ति सर्दी, खांसी से पीड़ित रहते हैं उन्हें लहसुनियां पहनना चाहिए. जो लोग स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से संतान सुख से वंचित हैं उनके लिए भी केतु रत्न धारण करना लाभप्रद होता है. लहसुनियां पहनने से एनिमिया की संभावना कम होती है. मुख के रोग, चेचक तथा बवासीर के लिए भी केतु प्रभावशाली रत्न माना जाता है




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सूर्य चक्र से भाग्य व आयु निकालना (Evaluation of Fortune and Longevity according to Sun Chakra)

ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति की आयु जानने के अनेक विधियां प्रचलित है. जिनमें से कुछ को विशेष रुप से प्रयोग भी किया जाता है. आयु का निर्धारण करना नैतिक नियमों से उचित नहीं जान पडता परन्तु अगर किसी की जन्म कुण्डली में अल्पायु योग है

तथा ऎसे व्यक्ति के मन में अपनी आयु को लेकर किसी प्रकार की कोई चिन्ता न रहे इसके लिये इस विधि से भी फल विचार कर लेना चाहिए. जन्म कुण्डली तथा सूर्य चक्र (Sun Chakra) जब दोनों ही विधियों से इस प्रकार के निष्कर्ष आ रहे हों तो सम्भावनाओं को निश्चित समझना चाहिए. अन्यथा इस विषय को लेकर मन में भ्रम का भाव नहीं रखना चाहिए.

अन्य विधियों के साथ-साथ सूर्य चक्र (Sun Chakra) विधि भी आयु निर्धारण (Longevity through Sun Chakra ) के लिये प्रयोग में लाई जाती है. आईये इस विधि को विस्तार में समझने का प्रयास करें. 

सूर्य जन्म नक्षत्र आधारित पद्वति (Basis of Surya Janam Nakshatra)


यह विधि जन्म के सूर्य नक्षत्र पर आधारित होती है. जन्म कुण्डली में सूर्य जिस नक्षत्र में स्थित होता है. उस नक्षत्र से सूर्य चक्र (Sun Chakra) में नक्षत्रों की स्थापना आरम्भ की जाती है. सूर्य चक्र (Sun Chakra) के लिये एक मानवाकृ्ति बनाई जाती है. तथा उस मानवाकृ्ति पर सूर्य नक्षत्र को सबसे पहले स्थापित किया जाता है. शेष नक्षत्र सिर से लेकर पैरों तक स्थापित किये जाते है. अन्य नक्षत्र इस प्रकार रखे जाते है.

नक्षत्र स्थापना (Formation of the Surya Nakshatra)


बनाई गई मानवाकृ्ति के सिर पर सूर्य नक्षत्र व इसके बाद के दो नक्षत्र रखे जाते है. मुंह में इसके बाद के तीन नक्षत्र, दोनों कन्धों पर एक-एक नक्षत्र रखा जाता है. दोनों बाजूओं पर एक-एक नकत्र रखा जाता है. इसके बाद हथेलियों पर भी एक-एक नक्षत्र रखा जाता है. इसके बाद के एक -एक नक्षत्र पिंडलियों पर स्थापित किये जाते है.

इसी क्रम से आगे आने वाले नक्षत्रों में क्रमश: पांच नक्षत्र ह्रदय, एक नाभि, एक नाभि के नीचे के भाग पर, एक-एक नक्षत्र घुटनों में रखा जाता है. शेष छ: नक्षत्रों को पैर के पंजों में तीन -तीन करके रखा जाता है. कुल मिला के 28 नक्षत्र इस मानवाकृ्ति पर स्थापित कर दिये जाते है.

जन्म नक्षत्र की भूमिका (Role of Janm Nakshatra)


सूर्य चक्र पद्वति में नक्षत्रों की स्थापना करने के बाद जन्म नक्षत्र शरीर के जिस अंग पर आता है. उसके अनुसार व्यक्ति को फल मिलने की सम्भावनाएं रहती है. जन्म नक्षत्र के अनुसार फल इस प्रकार प्राप्त हो सकते है.:-

सूर्य चक्र के फल (Results For Surya Nakshatra)


1. सिर स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल (Results for placement of Surya Nakshatra on the Head Point)
सिर पर जन्म नक्षत्र आने पर व्यक्ति को राजयोग के समान फल प्राप्त होने की संभावनाएं रह्ती है. तथा ऎसे व्यक्ति की आयु भी 100 वर्ष से अधिक कही गई है.

2. मुख स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल (Results for placement of Surya Nakshatra on the Mouth Point)
जब जन्म नक्षत्र मुख पर आने पर व्यक्ति को जीवन में उतम भोजन का सुख प्राप्त होने के योग बनते है. तथा इस योग के व्यक्ति की आयु 80 वर्ष से अधिक मानी गई है.

3. कन्धों के स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल (Results for placement of Surya Nakshatra on the Shoulder Point)
कन्धों में जन्म नक्षत्र स्थापित होने पर व्यक्ति को उतम वाहनों का सुख विशेष रुप से प्राप्त होता है. तथा इस योग के व्यक्ति की आयु भी 80 वर्ष से अधिक कही गई है.

4. भुजा स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल (Results for placement of Surya Nakshatra on the Shoulder Point)
सूर्य चक्र (Sun Chakra) में जिस व्यक्ति का जन्म नक्षत्र भुजा पर आता है उस व्यक्ति को जीवन में अपने जन्म स्थान से दूर निवास करना पड सकता है. तथा ऎसे व्यक्ति की आयु 77 वर्ष से अधिक होने की संभावना रहती है.

5. हथेली पर जन्म नक्षत्र के फल (Results for placement of Surya Nakshatra on the Palm Point)
जब सूर्य चक्र में जन्म नक्षत्र हथेली पर पडता है, तब व्यक्ति को जीवन में कई बार अपयश का सामना करना पडता है. तथा इस योग के व्यक्ति की आयु भी 77 वर्ष होने की संभावनाएं बताई गई है.

6. पिण्डलियों पर जन्म नक्षत्र के फल Results for placement of Surya Nakshatra on the Shank Point)
जन्म नक्षत्र जब पिण्डलियों में आयें तो व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में अस्थिरता रहने की सम्भावनाएं बनती है. तथा यह योग व्यक्ति को अल्पायु भी बनाता है.

7. ह्रदय स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल (Results for placement of Surya Nakshatra on the Heart Point)
सूर्य चक्र में जन्म नक्षत्र जब ह्रदय स्थान पर पडें तो व्यक्ति को जीवन में सुख-सम्मान प्राप्त होने के योग बनते है. तथा इस योग के व्यक्ति की आयु 68 वर्ष से अधिक कही है.

8. नाभि स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल (Results for placement of Surya Nakshatra on the Navel Point)
जन्म नक्षत्र की स्थिति नाभि स्थान पर होने पर व्यक्ति में थोडे में संतुष्ट होने का भाव पाया जाता है. व उसकी आयु भी 68 वर्ष से अधिक होने की सम्भावना रहती है.

9. नाभि के नीचे के स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल (Results for placement of Surya Nakshatra Below the Navel Point)
जन्म नक्षत्र जब नाभि के नीचे के भाग पर स्थापित होने पर व्यक्ति में चारित्रिक विशेषताएं कम होने की सम्भावनाएं रहती है. व इस योग के व्यक्ति की आयु 60 वर्ष से अधिक हो सकती है.

10. घुटने स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल (Results for placement of Surya Nakshatra on the Knee Point)
सूर्य चक्र में नक्षत्रों की स्थापना करते समय जब जन्म नक्षत्र घुटने पर स्थापित हों तो व्यक्ति विदेश जाना अधिक पसन्द करता है. तथा उसे परिवार से दूर रहना पड सकता है. इस योग के व्यक्ति की आयु में कुछ कमी हो सकती है.

11. पैर स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल (Results for placement of Surya Nakshatra on the Foot Point)
अन्त में जब जन्म नक्षत्र पैरों पर पडे तो व्यक्ति को धन सम्बन्धी परेशानियां हो सकती है. तथा उसकी आयु में भी कमी रहने की संभावना बनती है.



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विवाह भाव में मंगल एवं अन्य ग्रहों की युति Marriage and Combinations of Mars With Other Planets in Seventh House

सप्तम भाव को विवाह का भाव कहा जाता है. इस भाव से संबन्ध रखने वाले ग्रह वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते है. सप्तम भाव की राशि, इस भाव में स्थित ग्रह व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव व आचरण को दर्शाते हैं.

विवाह भाव, विवाह भाव के स्वामी तथा विवाह के कारक ग्रह शुभ ग्रहों से संबन्ध बनाते हैं तो दाम्पत्य जीवन में सुख-शान्ति की वृद्धि होती है. इसके विपरीत जब इन तीनों पर अशुभ या पापी ग्रहों का प्रभाव होता है तो गृहस्थी में तनाव बढ़ता है. आईये देखे कि सप्तम भाव में होने वाली ग्रहों की युति किस प्रकार अपना प्रभाव डालती है.

सप्तम भाव में मंगल- बुध कि युति (Combination of Mars, Jupiter and Saturn with Other Planets in Seventh House)
अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली में विवाह भाव में मंगल व बुध दोनों एक साथ स्थित हों तो व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वास्थ्य में कमी के योग बनते है. इस योग के व्यक्ति के जीवनसाथी को बेवजह इधर-उधर भटकना पड़ सकता है. इनके साथी को वाद-विवाद कि स्थिति से बचने का प्रयास करना चाहिए तथा अच्छे कार्य करना चाहिए.

सप्तम भाव में मंगल-गुरु की युति (Combination of Mars-Jupiter in Seventh House)
सप्तम भाव में जब मंगल व गुरु कि युति हो रही हों तो व्यक्ति के जीवनसाथी के साहस में वृद्धि की संभावनाएं बनती है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति का जीवनसाथी पराक्रमी होता है. उसे अपने मित्रों व बंधुओं का सुख प्राप्त होता है. घूमने का शौकीन होता है. इस योग के व्यक्ति को अपने जीवनसाथी से कुछ कम सहयोग मिल सकता है.

सप्तम भाव में मंगल-शुक्र की युति (Combination of Mars-Venus in Seventh House)
कुण्डली में सप्तम भाव में मंगल व शुक्र की युति व्यक्ति के जीवनसाथी को रोमांटिक बनाती है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति का जीवनसाथी विशेष स्नेह करने वाला होता है. ऎसे व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के कारण कई बार अपयश का भी सामना करना पड़ सकता है. कुण्डली में यह योग होने पर व्यक्ति को अपने जीवन साथी से संबन्धों में ईमानदार रहना चाहिए.

सप्तम भाव में मंगल-शनि की युति (Combination of Mars-Saturn in Seventh House)
अगर कुण्डली के सप्तम भाव में मंगल व शनि दोनों एक साथ स्थित हों तो संतान सुख में कमी हो सकती है. इस योग में किसी कारण से जीवनसाथी से कुछ समय के लिए दूर रहना पड़ता है. जीवनसाथी के स्वास्थ्य में कमी भी आती है. वैवाहिक जीवन में इन्हें अपयश से बचने का प्रयास करना चाहिए.

सप्तम भाव में बुध-गुरु की युति (Combination of Mercury-Jupiter in Seventh House)
यह योग व्यक्ति के जीवनसाथी के सौन्दर्य में वृद्धि करता है. विवाह भाव में बुध व गुरु कि युति होने से मित्रों की संख्या अधिक होती है. उन्हें अपने छोटे भाई-बहनों का सहयोग प्राप्त होता है. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के जीवनसाथी के धन में वृद्धि होती है.

यह योग व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव में मृ्दुता का भाव रहने की संभावनाएं बनाता है. अपने मधुर स्वभाव के कारण उसके सभी से अच्छे संबन्ध होते है. ऎसे व्यक्ति को अपने पिता के सहयोग से लाभ प्राप्त होने की भी संभावनाएं बनती है.

सप्तम भाव में बुध-शुक्र की युति (Combination of Mercury-Venus in Seventh House)
जब कुण्डली में विवाह भाव में बुध व शुक्र दोनों शुभ ग्रह एक साथ स्थित हों तो व्यक्ति के जीवनसाथी के सहयोग से धन व वैभव में वृद्धि की संभावना बनती हैं. योग के शुभ प्रभाव से व्यक्ति के पारिवारिक स्तर में भी वृद्धि होती है. उन्हें सरकारी क्षेत्रों से भी लाभ प्राप्त होने की संभावना बनती है. इस योग के व्यक्ति का जीवन साथी स्वभाव, गुण व योग्यता से उत्तम होता है.

सप्तम भाव में बुध-शनि की युति (Combination of Mercury-Saturn in Seventh House)
इस योग वाले व्यक्ति की शादी में विलम्ब की संभावना रहती है. इनके जीवनसाथी को परोपकारी बनना चाहिए तथा सच बोलने का प्रयास करना चाहिए.

सप्तम भाव में गुरु-शुक्र की युति (Combination of Jupiter-Venus in Seventh House)
यह योग व्यक्ति के जीवनसाथी को सुन्दर, सुशील व जीवनसाथी से स्नेह करने वाला बनाता है. इसके फलस्वरुप व्यक्ति के धन, वैभव में वृद्धि होती है. उत्तम वाहनों का सुख प्राप्त होने का योग बनता है. इस योग के कारण व्यक्ति के यश में भी बढ़ोतरी होती है.

सप्तम भाव में गुरु-शनि की युति (Combination of Jupiter-Saturn in Seventh House)
यह योग जीवनसाथी को जिद्दी बना सकता है. इस योग के व्यक्ति को अपने पिता के धन को अनावश्य व्यय नहीं करना चाहिए. इन्हें आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ सकता है.

सप्तम भाव में शुक्र-शनि की युति (Combination of Venus-Saturn in Seventh House)
विवाह भाव में शुक्र व शनि की युति से व्यक्ति के जीवनसाथी को धन, वैभव तथा अनेक प्रकार के सुख प्राप्त होने कि संभावना बनती है




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पितृ दोष कारण और निवारण - Pitru Dosha, How it forms and Pitra Dosha Remedies

कुण्डली के नवम भाव को भाग्य भाव कहा गया है . इसके साथ ही यह भाव पित्र या पितृ या पिता का भाव तथा पूर्वजों का भाव होने के कारण भी विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाता है . महाऋषियों के अनुसार पूर्व जन्म के पापों के कारण पितृ दोष (Pitra Dosha) बनता है . इसके अलावा इस योग के बनने के अनेक अन्य कारण भी हो सकते है .

सामान्यत: व्यक्ति का जीवन सुख -दुखों से मिलकर बना है. पूरे जीवन में एक बार को सुख व्यक्ति का साथ छोड भी दे, परन्तु दु:ख किसी न किसी रुप में उसके साथ बने ही रहते है, फिर वे चाहें, संतानहीनता, नौकरी में असफलता, धन हानि, उन्नति न होना, पारिवारिक कलेश आदि के रुप में हो सकते है . पितृ दोष को समझने से पहले पितृ क्या है इसे समझने का प्रयास करते है .

पितृ क्या है? What is Pitra Dosha
पितरों से अभिप्राय व्यक्ति के पूर्वजों से है . जो पित योनि को प्राप्त हो चुके है . ऎसे सभी पूर्वज जो आज हमारे मध्य नहीं, परन्तु मोहवश या असमय मृ्त्यु को प्राप्त होने के कारण, आज भी मृ्त्यु लोक में भटक रहे है . अर्थात जिन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई है, उन सभी की शान्ति के लिये पितृ दोष निवारण (Pitra Dosha Niwaran) उपाय किये जाते है .
ये पूर्वज स्वयं पीडित होने के कारण, तथा पितृ्योनि से मुक्त होना चाहते है, परन्तु जब आने वाली पीढी की ओर से उन्हें भूला दिया जाता है, तो पितृ दोष उत्पन्न होता है .

पितृ दोष कैसे बनता है? How Pitra Dosha Forms?
नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है . शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है . व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है .

पितृ दोष के कारण - What is Pitra Dosh?
पितृ दोष (Pitra Dosha) उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते है . जैसे:- परिवार में अकाल मृ्त्यु हुई हों, परिवार में इस प्रकार की घटनाएं जब एक से अधिक बार हुई हों . या फिर पितरों का विधी विधान से श्राद्ध न किया जाता हों, या धर्म कार्यो में पितरों को याद न किया जाता हो, परिवार में धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न न होती हो, धर्म के विपरीत परिवार में आचरण हो रहा हो, परिवार के किसी सदस्य के द्वारा गौ हत्या हो जाने पर, या फिर भ्रूण हत्या होने पर भी पितृ दोष व्यक्ति कि कुण्डली में नवम भाव में सूर्य और राहू स्थिति के साथ प्रकट होता है .

नवम भाव क्योकि पिता का भाव है, तथा सूर्य पिता का कारक होने के साथ साथ उन्नती, आयु, तरक्की, धर्म का भी कारक होता है, इसपर जब राहू जैसा पापी ग्रह अपनी अशुभ छाया डालता है, तो ग्रहण योग के साथ साथ पितृ दोष बनता है . इस योग के विषय में कहा जाता है कि इस योग के व्यक्ति के भाग्य का उदय देर से होता है . अपनी योग्यता के अनुकुल पद की प्राप्ति के लिये संघर्ष करना पडता है .

हिन्दू शास्त्रों में देव पूजन से पूर्व पितरों की पूजा करनी चाहिए . क्योकि देव कार्यो से अधिक पितृ कार्यो को महत्व दिया गया है . इसीलिये देवों को प्रसन्न करने से पहले पितरों को तृ्प्त करना चाहिए . पितर कार्यो के लिये सबसे उतम पितृ पक्ष अर्थात आश्चिन मास का कृ्ष्ण पक्ष समझा जाता है .

पितृ दोष शान्ति के उपाय - Pitra Dosh Remedies
आश्विन मास के कृ्ष्ण पक्ष में पूर्वजों को मृ्त्यु तिथि अनुसार तिल, कुशा, पुष्प, अक्षत, शुद्ध जल या गंगा जल सहित पूजन, पिण्डदान, तर्पण आदि करने के बाद ब्राह्माणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन, फल, वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करने से पितृ दोष (Pitra Dosha) शान्त होता है .

इस पक्ष में एक विशेष बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह है कि जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की मृ्त्यु की तिथि न मालूम हो, तो ऎसे में आश्विन मास की अमावस्या को उपरोक्त कार्य पूर्ण विधि- विधान से करने से पितृ शान्ति होती है . इस तिथि को सभी ज्ञात- अज्ञात, तिथि- आधारित पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है .

पितृ दोष (Pitra Dosha) निवारण के अन्य उपाय Other Remedies for Pitra Dosha
(1) पीपल के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है . इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है .

(2) प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है.
(4) सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है.

(5) सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कूंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है.

(6) सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya) के दिन पितृ दोष निवारण पूजा करने से भी पितृ दोष में लाभ मिलाता है .




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Friday 2 September 2011

WHAT IS VEDIC ASTROLOGY?


Vedic Astrology is an ancient Indian science which explains planetary motions and positions with respect to time and their effect on humans and other entities on earth. Vedic astrology can be traced thousands of years back. Early Vedic astrology was only based on the movement of planets with respect to stars, but later on it started including zodiac signs as well. According to Vedic astrology there are 27 constellations made up of 12 zodiac signs, 9 planets and 12 houses with each house and planet representing some aspect of human life. Depending on when a person is born, the 12 signs are distributed among the 12 houses and 9 planets are placed in various houses. This visual representation of the snapshot of the signs and planets is called a horoscope chart. Vedic astrology is nothing but interpreting the meaning of these arrangements as it applies to humans and other entities.
TYPES OF VEDIC ASTROLOGY
Vedic astrology (Jyotisha) has three main branches:
  • Siddhanta (Astronomy): Astronomy & its application to astrology
  • Samhita (Mundane astrology): Covers Mundane astrology, predicting important events related to countries such as war, earth quakes, political events, astro - meteorology, financial positions, electional astrology; house & construction related matters (Vaastu Shaastra), animals, portents & omens etc.
  • Hora (Predictive astrology):
  • This branch has the following different styles / sub branches:-
    • Jaatak Shaastra / Hora Shaastra (Natal Astrology / horoscopy): Prediction based on individual horoscope.
    • Muhurt or Muhurtha (Electional astrology): Selection of beneficial time to initiate an activity to get maximum fruition from the life activities.
    • Swar Shaastra (Phonetical astrology): Predictions based on name & sounds.
    • Prashna (Horary astrology): Predictions based on time when a question is asked by querent / querist.
    • Ankjyotisha / Kabala (Numerology): A branch of astrology based on numbers.
    • Nadi Astrology: An ancient treatise having detailed predictions for individuals.
    • Tajik Shaastra / Varsha Phal (Annual Horoscopy): Astrology based on annual solar returns.
    • Tajik Shaastra / Varsha Phal (Annual Horoscopy): Astrology based on annual solar returns.
    • Jaimini Sutras: A non-conventional method of timing of events based on Famous Indian astrologer, Acharya Jaimini.
    • Nastjaatakam (Lost Horoscopy): Art of tracing / construction of lost horoscopes.
    • Streejaatak (female astrology): A special branch of astrology dealing with female nativities.
DIFFERENCE BETWEEEN VEDIC AND WESTERN ASTROLOGY
The most easily referred to difference between the two lies in the method of measurement of the Zodiac. Vedic astrology uses primarily the sidereal zodiac (in which stars are considered to be the fixed background against which the motion of the planets is measured), whereas most Western astrology uses the tropical zodiac (the motion of the planets is measured against the position of the Sun on the Spring equinox). This difference becomes only noticeable over time, after the course of several centuries, as a result of the precession of the equinoxes. Synchronically, the two systems are identical, with just a shift of the origin of the ecliptic longitude by about 22 degrees or days, resulting on the placement of planets in the previous sign in Western charts about 80% of the time.
SCEINTIFIC BASIS OF VEDIC ASTROLOGY
Ancient Hindu literature is full of mythology related to zodiac signs, constellations (also known as Nakshatras) and planets, which explain a lot of astrological rules. However the popular opinion is that the mythology was just a method that our ancient seers used to explain some very complex physical laws, which were beyond the comprehension of common people. Unfortunately even today's modern science has not been able to fully understand those physical laws behind this ancient method although it's getting there very fast. Our current understanding of the science of astrology lies in statistics and probability. Statistics is the branch of mathematics, which can deal with correlation between two or more seemingly independent events without knowing the cause of that correlation. If in a chart of 1000 people have the same astrological chart then it can be seen that certain astrological rules hold true in 70%-80% of them. In statistical terms we may say that the occurrence of a specific event in one's life when certain planetary combination exists is "statistically significant". Let's say that you flip a coin 1000 times then the probability of "heads" is always near 50%. Now let's say that you observe the results of flipping a coin during the sun set and sun rise. If you find, after an year long test, that probability of "heads " coming up during sunrise is not actually 50%, as expected, but its 70%, then you can actually construct a rule that if you flip a coin during sun rise, the chances of you getting a "heads" will always be more. Vedic astrology can be explained in a similar way. Certain combinations in one's chart actually result in a prediction, which turns out to be correct in 70-80% of the charts having that combination. We may not explain it yet as to why it happens but the evidence is pretty strong that events can be predicted with very reasonable statistical significance.
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Thursday 1 September 2011

Numerology Compatibility with Your Boyfriend/Girlfriend or husband/wife


Numerology is a belief system that has been around for many centuries. It is considered that every human being is influenced by their birth date and name to Numerology Crystal Power Numerology Compatibility with Your Boyfriend/Girlfrienda certain extent. It is also believed that numerology is a great way not only to understand oneself but also to have a better understanding of their relationships. Therefore, if there is someone whom you like then may be you can try out numerology to find out if he/she is the right one for you.
Yes, numerology can play a vital role in your love life and relationships. It can logically help you understand why some relationships are more intimate and deeper than others. But that’s not all, there’s a lot more to numerology, it also helps you improve your present relationship and also take caution against any problem that may come your way.
So in case you are planning to use numerology to answer your questions, then there are two ways to go about it, either you take the help of an astrologer or you can access the internet for it as well. There are several websites on the internet that help you find out your love compatibility with your partner. All you have to do is register with them by paying a certain amount of subscription fee and provide them with all the necessary information that they will be asking for and you will have your compatibility results ready in no time.
But beware, because of the growing popularity of numerology among people, there are many fake websites that are after your money but do not provide you with genuine services. You will also come across certain websites that provide you free services, but I don’t know how accurate the results will be. I always recommend my readers to go for reputed paid sites rather than the free ones, just to ensure the results are accurate.
I know there may be many who do not believe in numerology, as I mentioned earlier it is basically a belief system. Many critics consider numerology as a pseudo science of mathematics. Although, there are not many evidences to prove numerology to be accurate but the fact that it has persisted for centuries is something that leads us to believe that numerology is not just about mere numbers but it surely has something to do with our lives.
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