Sunday, 22 May 2016

जीवन का हर सुख छिपा है इन उपायों में

हर इंसान यही चाहता है कि उसे दुनिया का हर सुख मिले लेकिन ऐसा नहीं मुमकिन नहीं। लेकिन यदि कुछ साधारण उपाय किए जाएं तो ऐसा असंभव भी नहीं। नीच कुछ साधारण तंत्र उपाय बताए गए हैं, जिन्हें करने से जीवन की कई परेशानियां समाप्त हो जाती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

उपाय

1- यदि में सुख-शांति नहीं रहती हो तो घर के पीने के पानी के मटके में से एक लोटा पानी लेकर अपने भवन के चारों कोनों में और मकान के बीचों-बीच थोड़ा सा जल छिड़क दें। परिवार में शांति बनी रहेगी।

2- यदि रात में डरावने सपने आते हों तो जिस दिशा में पैर रखते हों उस दिशा में सिर करके सो जाएं। डरावने सपने नहीं आएंगे और भरपूर नींद आएगी।

3- कई बार देखने में आता है कि हंसते-खेलते परिवार को किसी की नजर लग जाती है यदि ऐसा हो तो मंगलवार-शनिवार को शाम के समय मंदिर में 6 अगरबत्ती अपने ईष्टदेव का ध्यान कर लगा दें। अब थोड़ा सा पीसा हुआ सेंधा नमक घर के चारों कोनों में छिड़क दें और अगले दिन झाड़ू से इस नमक को घर के बाहर निकाल दें। बुरी नजर का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।

4- यदि कोई रोग लंबे समय तक न जाए तो एख रूपए का चमकीला सिक्का रात को सिरहाने रखकर सो जाएं। सुबह उसे शमशान की सीमा पर जाकर चुपचाप फेंक आएं। रोग समाप्त हो जाएगा।

5- घर के आंगन में सूखे एवं भद्दे दिखने वाले पेड़ जीवन के अंत की ओर इशारा करते हैं। ऐसे पेड़ों या ठूंठ को शीघ्र ही कटवा देना चाहिए।

6- प्रतिदिन एक गेंदे का फूल जो पूर्ण विकसित हो, उस पर थोड़ा सा कुंकुम लगाकर किसी देवमूर्ति के सामने या तुलसी के पौधे पर चढ़ाने से पति-पत्नी के बीच का तनाव कम हो जाता है।

7- किसी एक छोटे बच्चे को प्रतिदिन उसकी मनचाही वस्तु कुछ दिनों तक लाकर दें। ऐसा करने से जीवन में आ रही परेशानियां स्वत: ही समाप्त हो जाती है।

रत्‍न : कब, कौनसा और कैसे पहनें

आमतौर पर ज्‍योतिष और ज्‍योतिष से जुड़ी किसी भी विधा को विज्ञान का दर्जा दे दिया जाता है। लेकिन रत्‍न विज्ञान को इस तर्ज पर विज्ञान का दर्जा नहीं मिला है। जैमोलॉजी वास्‍तव में एक विज्ञान है और इस पर अच्‍छा खासा काम हो रहा है। यह बात अलग है कि कीमती पत्‍थरों ने अपना यह स्‍थान खुद बनाया है। ठीक सोने, चांदी और प्‍लेटिनम की तरह। इसमें ज्‍योतिष का कोई रोल नहीं है। 
पर यकीन मानिए भाग्‍य के साथ रत्‍नों का जुड़ाव मोहनजोदड़ो सभ्‍यता के दौरान भी रहा है। उस जमाने में भी भारी संख्‍या में गोमेद रत्‍न प्राप्‍त हुए हैं। यह सामान्‍य अवस्‍था में पाया जाने वाला रत्‍न नहीं है, इसके बावजूद इसकी उत्‍तरी पश्चिमी भारत में उपस्थिति पुरातत्‍ववेत्‍ताओं के लिए भी आश्‍चर्य का विषय रही। पता नहीं उस दौर में इतने अधिक लोगों ने गोमेद धारण करने में रुचि क्‍यों दिखाई, या गोमेद का रत्‍न के रूप में धारण करने के अतिरिक्‍त भी कोई उपयोग होता था, यह स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन वर्तमान में राहू की दशा भोग रहे जातक को राहत दिलाने के लिए गोमेद पहनाया जाता है। 
इंटरनेट और किताबों में रत्‍नों के बारे में विशद जानकारी देने वालों की कमी नहीं है। इसके इतर मेरी पोस्‍ट इसकी वास्‍तविक आवश्‍यकता के बारे में है। मैं एक ज्‍योतिष विद्यार्थी होने के नाते रत्‍नों को पहनने का महत्‍व बताने नहीं बल्कि इनकी वास्‍तविक आवश्‍यकता बताने का प्रयास करूंगा।
दो विधाओं में उलझा रत्‍न विज्ञान
वर्तमान दौर में हस्‍तरेखा और परम्‍परागत ज्‍योतिष एक-दूसरे में इस तरह घुलमिल गए हैं कि कई बार एक विषय दूसरे में घुसपैठ करता नजर आता है। रत्‍नों के बारे में तो यह बात और भी अधिक शिद्दत से महसूस होती है। हस्‍तरेखा पद्धति ने हाथ की सभी अंगुलियों के हथेली से जुड़े भागों पर ग्रहों का स्‍वामित्‍व दर्शाया है। ऐसे में कुण्‍डली देखकर रत्‍न पहनने की सलाह देने वाले लोग भी हस्‍तरेखा की इन बातों को फॉलो करते दिखाई देते हैं। जैसे बुध के लिए बताया गया पन्‍ना हाथ की सबसे छोटी अंगुली में पहनने, गुरु के लिए पुखराज तर्जनी में पहनने और शनि मुद्रिका सबसे बड़ी अंगुली में पहनने की सलाहें दी जाती हैं। बाकी ग्रहों के लिए अनामिका तो है ही, क्‍योंकि यह सबसे शुद्ध है। मुझे इस शुद्धि का स्‍पष्‍ट आधार नहीं पता लेकिन शुक्र का हीरा, मंगल का मूंगा, चंद्रमा का मोती जैसे रत्‍न इसी अंगुली में पहनने की सलाह दी जाती है। 
शरीर से टच तो हुआ ही नहीं
शुरूआती दौर में जब मुझे ज्‍योतिष की टांग-पूछ भी पता नहीं थी, तब मैं एक पंडितजी के पास जाया करता था। वहां एक जातक को लेकर गया, उन्‍होंने मोती पहनने की सलाह दी। मैंने जातक के साथ गया और मोती की अंगूठी बनवाकर पहना दी। कई सप्‍ताह गुजर गए। कोई फर्क महसूस नहीं हुआ तो जातक महोदय मेरे पास आए और मुझे लेकर फिर से पंडितजी के पास पहुंचे। पंडितजी ने कहा दिखाओ कहां है अंगूठी। दिखाई तो वे खिलखिलाकर हंस दिए। बोले यह तो शरीर के टच ही नहीं हो रही है तो इसका असर कैसे पड़ेगा। मैंने पूछा तो टच कैसे होगी। तो उन्‍होंने बताया कि बैठकी मोती खरीदो और फलां दुकान से बनवा लो। हम दौड़े-दौड़े गए और बैठकी मोती लेकर बताई गई दुकान पर पहुंच गए। हमने बताया कि टच होने वाली अंगूठी बनानी है। दुकानदार समझ गया कि पंडित जी ने भेजा है। उसने कहा कल ले जाना। और अगले दिन अंगूठी बना दी। वह इस तरह थी कि नीचे का हिस्‍सा खाली था। इससे मोती अंगुली को छूता था। कुछ ही दिनों में मोती पहनाने का असर भी हो गया। मेरे मन में भक्ति भाव जाग गया, और एक बात हमेशा के लिए सीख गया कि जो भी रत्‍न पहनाओ उसे शरीर के टच कराना जरूरी है। 
टच से क्‍या होता है किरणें महत्‍वपूर्ण हैं 
अंग्रेजी में इसे पैराडाइम शिफ्ट कहते हैं और हिन्‍दी में मैं कहूंगा दृष्टिकोणीय झटका। एक दूसरे हस्‍तरेखाविज्ञ कई साल बाद मुझसे मिले। मैं किसी को उपचार बता रहा था और साथ में शरीर से टच होने वाली नसीहत भी पेल रहा था, कि हस्‍तरेखाविज्ञ ने टोका कि टच होने से क्‍या होता है, यह कोई आयुर्वेदिक दवा थोड़े ही है। रत्‍नों के जरिए तो किरणों से उपचार होता है। मैंने स्‍पष्‍ट कह दिया समझा नहीं तो उन्‍होंने समझाया कि हम जो रत्‍न पहनते हैं वे ब्रह्माण्‍ड की निश्‍चित किरणों को खींचकर हमारे शरीर की कमी की पूर्ति करते हैं। इससे हमारे कष्‍ट दूर हो जाते हैं। विज्ञान का ठोठा स्‍टूडेंट होने के बावजूद मुझे पता था कि हम जो रंग देखते हैं वास्‍तव में वह उस पदार्थ द्वारा रिफलेक्‍ट किया गया रंग होता है। यानि स्‍पेक्‍ट्रम के एक रंग को छोड़कर बाकी सभी रंग वह पदार्थ निगल लेता है, जो रंग बचता है वही हमें दिखाई देता है। ऐसा ही कुछ रत्‍नों के साथ भी होता होगा। यह सोचकर मुझे उनकी बात में दम लगा।

अब मैं तो कंफ्यूजन में हूं कि वास्‍तव में टच करने से असर होगा या किरणों से असर होगा। वास्‍तव में रत्‍नों की जरूरत है भी कि नहीं, रत्‍नों का विकल्‍प क्‍या हो सकता है, रत्‍न किसे पहनाना आवश्‍यक है, इन सब बातों को लेकर कालान्‍तर में मैंने कुछ तय नियम बना लिए... अब ये कितने सही है कितने गलत यह तो नहीं बता सकता, लेकिन इससे जातक को धोखे में रखने की स्थिति से बच जाता हूं। 
क्‍या है ये नियम अगली पोस्‍ट में बताउंगा....

सही रोजगार का चुनाव जन्मकुंडली अनुसार

इन्सान को न केवल जिन्दा रहने बल्कि जीवन की गाडी को गतिमान बनाए रखने के लिए भी अपने लिए किसी सही रोजगार का चुनाव करना वैसा ही आवश्यक है, जैसा किसी मुसाफिर के लिए यात्रा से पूर्व अपने गंतव्य स्थल की दिशा निश्चित कर लेना. अगर हम यात्रा आरम्भ करने से पहले अपनी दिशा निश्चित न करें तो हम कभी एक ओर चलेंगें,कभी दूसरी ओर; कभी दायें तो कभी बायें, कभी आगे को तो कभी पीछे को. इसका परिणाम यह होगा कि बहुत समय तक घूमते रहकर भी गंतव्य तक न पहुँच पायेंगें. होगा यही कि जिस स्थान से चलना आरम्भ किया, उसके आसपास ही चक्कर लगाते रहेंगें अथवा यह भी सम्भव है कि रवानगी की जगह से भी शायद कुछ कदम पीछे हट जायें. यात्री के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह पहले से यह स्थिर कर ले कि उसे किस दिशा में कदम बढाने है. इसी तरह व्यक्ति को अपने कैरियर के विषय में निर्णय लेने से पूर्व ये जान लेना चाहिए कि उसके भाग्य में किस माध्यम से धन कमाना लिखा है अर्थात उसकी जन्मकुंडली अनुसार उसे किस कार्यक्षेत्र में जाना है.
विषय पर आगे बढने से पूर्व एक बात स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि यहाँ इस आलेख के माध्यम से मैं आप लोगों को कोई ऎसा किताबी ज्ञान देने नहीं जा रहा हूँ कि फलानी-फलानी राशि वालों को फलाना व्यवसाय करना चाहिए अथवा फलानी राशि वाले अमुक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं या नहीं, या फिर ये कि आपको कैरियर हेतु किस क्षेत्र का चुनाव करना चाहिए ? मैं आपको ऎसा कुछ भी नहीं बताने जा रहा. बल्कि मैं तो यहाँ आपको ज्योतिष की वो विधि बताने जा रहा हूँ जिसके द्वारा किसी व्यक्ति की जन्मपत्रिका देखकर इस बात को साफ-स्पष्ट शब्दों में दावे सहित कहा जा सकता है कि इस व्यक्ति के भाग्य में आजीविका हेतु अमुक क्षेत्र में जाना निश्चित है और समय आने पर उसका प्रारब्ध उसे उस कार्यक्षेत्र में खीँच कर ले ही जाएगा. शर्तिया!

दरअसल एक ओर तो धन के लोभ और दूसरे लाल-काली-पीली किताबों नें आज ज्योतिष विद्या को पूरी तरह से सम्भावनाओं का शास्त्र बना छोडा है. आज स्थिति ये है कि अपने नाम के आगे आचार्य, महर्षि और ज्योतिषमर्मज्ञ जैसी उपाधियाँ लगाए रखने वाले बडे-बडे स्वनामधन्य ज्योतिषी भी अपने आपमें इतनी योग्यता नहीं रखते कि वो जन्मकुंडली देखकर एक भी बात दावे सहित कह सकें कि ऎसा होगा ही या फिर ऎसा नहीं होगा. 'संभावना' शब्द के जरिए स्वयं के बच निकलने का रास्ता वो पहले तैयार रखते हैं. ताकि कल को फलकथन मिथ्या सिद्ध हो तो भी बच कर साफ निकला जा सके.  

बहरहाल हम बात कर रहे हैं व्यक्ति के रोजगार(Profession) की. चाहे लाल-किताब हो अथवा वैदिक ज्योतिष, अधिकतर ज्योतिषी व्यक्ति के कार्यक्षेत्र, रोजगार के प्रश्न पर विचार करने के लिए जन्मकुंडली के दशम भाव (कर्म भाव) को महत्व देते हैं. वो समझते हैं कि जो ग्रह दशम स्थान में स्थित हो या जो दशम स्थान का अधिपति हो, वो इन्सान की आजीविका को बतलाता है. अब उनके अनुसार यह दशम स्थान सभी लग्नों से हो सकता है------जन्मलग्न से, सूर्यलग्न से या फिर चन्द्रलग्न से, जिसके दशम में स्थित ग्रहों के स्वभाव-गुण आदि से मनुष्य की आजीविका का पता चलता है. जबकि ऎसा बिल्कुल भी नहीं होता. ये पूरी तरह से गलत थ्योरी है.
दशम स्थान को ज्योतिष में कर्म भाव कहा जाता है, जो कि दैवी विकासात्मक योजना (Evolutionary Plan) का एक अंग है.यहाँ कर्म से तात्पर्य इन्सान के नैतिक अथवा अनैतिक, अच्छे-बुरे, पाप-पुण्य आदि कर्मों से है. दूसरे शब्दों में इन कर्मों का सम्बन्ध धर्म से, भावना से तथा उनकी सही अथवा गलत प्रकृति से है न कि पैसा कमाने के निमित किए जाने वाले कर्म(रोजगार) से.
आगामी लेख में ज्योतिष के जिज्ञासुओं और विद्यार्थियों का उस विधि से परिचय कराया जाएगा जिसके माध्यम से व्यक्ति की जन्मकुंडली को एक नजर भर देखकर ही उसकी आजीविका के बारे में बताया जा सकता है.

सूर्य चक्र से भाग्य व आयु निकालना (Evaluation of Fortune and Longevity according to Sun Chakra)


ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति की आयु जानने के अनेक विधियां प्रचलित है. जिनमें से कुछ को विशेष रुप से प्रयोग भी किया जाता है. आयु का निर्धारण करना नैतिक नियमों से उचित नहीं जान पडता परन्तु अगर किसी की जन्म कुण्डली में अल्पायु योग है

तथा ऎसे व्यक्ति के मन में अपनी आयु को लेकर किसी प्रकार की कोई चिन्ता न रहे इसके लिये इस विधि से भी फल विचार कर लेना चाहिए. जन्म कुण्डली तथा सूर्य चक्र (Sun Chakra) जब दोनों ही विधियों से इस प्रकार के निष्कर्ष आ रहे हों तो सम्भावनाओं को निश्चित समझना चाहिए. अन्यथा इस विषय को लेकर मन में भ्रम का भाव नहीं रखना चाहिए.

अन्य विधियों के साथ-साथ सूर्य चक्र (Sun Chakra) विधि भी आयु निर्धारण (Longevity through Sun Chakra ) के लिये प्रयोग में लाई जाती है. आईये इस विधि को विस्तार में समझने का प्रयास करें.

सूर्य जन्म नक्षत्र आधारित पद्वति (Basis of Surya Janam Nakshatra)


यह विधि जन्म के सूर्य नक्षत्र पर आधारित होती है. जन्म कुण्डली में सूर्य जिस नक्षत्र में स्थित होता है. उस नक्षत्र से सूर्य चक्र (Sun Chakra) में नक्षत्रों की स्थापना आरम्भ की जाती है. सूर्य चक्र (Sun Chakra) के लिये एक मानवाकृ्ति बनाई जाती है. तथा उस मानवाकृ्ति पर सूर्य नक्षत्र को सबसे पहले स्थापित किया जाता है. शेष नक्षत्र सिर से लेकर पैरों तक स्थापित किये जाते है. अन्य नक्षत्र इस प्रकार रखे जाते है.

नक्षत्र स्थापना (Formation of the Surya Nakshatra)


बनाई गई मानवाकृ्ति के सिर पर सूर्य नक्षत्र व इसके बाद के दो नक्षत्र रखे जाते है. मुंह में इसके बाद के तीन नक्षत्र, दोनों कन्धों पर एक-एक नक्षत्र रखा जाता है. दोनों बाजूओं पर एक-एक नकत्र रखा जाता है. इसके बाद हथेलियों पर भी एक-एक नक्षत्र रखा जाता है. इसके बाद के एक -एक नक्षत्र पिंडलियों पर स्थापित किये जाते है. 

रोजगार एवं धन प्राप्ति के सरल उपाय

 विद्या और पुरूषार्थ के होते हुए भी सफलता नहीं मिलती। ऐसे में यहां दिए गये कुछ सरल उपायों, टोटकों और मंत्रों से सफलता मिलने की संभावना बन सकती है। यदि बेरोजगारी का घटाटोप हो रहा हो तो रोजगार का प्रकाश पाने के लिए इन टोटकों को कर के देखें। : तीन सौ ग्राम काले उड़द का आटा लेकर, बिना छाने इसको गूंथकर खमीर उठा लें। तत्पश्चात् इसकी एक-एक रोटी तैयार करके मामूली-सी आंच पर सेंक लें, ताकि इसकी आसानी से गोलियां बन सकें। इस रोटी में से एक चौथाई भाग तोड़कर काले रंग के कपड़े में बांध लें, शेष पौन रोटी की 101 छोटी-छोटी गोलियां बनाकर, किसी ऐसे जलाशय के पास जायें, जिसमें मछलियां हों। जलाशय में एक-एक कर सारी गोलियां मछलियों को खिला दें। अब कपड़े में बंधी रोटी को मछलियों को दिखाते हुए एक साथ पानी में प्रवाहित कर दें। इस प्रकार 40 दिनों तक नियमित रूप से यह क्रिया करें। इससे बेरोजगारी अवश्य दूर होगी तथा कोई नौकरी, व्यापार अथवा उदर-पूर्ति के लिए कुछ न कुछ व्यवस्था जरूर हो जायेगी। दूसरा टोटका : बृहस्पतिवार (जुमेरात) को एक नर कौए को पकड़कर कर ले आयें, पिंजरे में बंद कर दें। खाने के लिए दाना-पानी दें। रविवार की सुबह उसे दही में चीनी मिलाकर खिलाएं और दोपहर को चावलों के भात में दूध व दही मिलाकर खाने को दें। इसके बाद सोमवार के दिन, जहां से काम हासिल करने का खयाल हो, वहां जायें। उस जगह के मुखय दरवाजे में दाखिल होते वक्त दायें पांव को पहले रखें। इस तरह से वहां पहुंचने के साथ ही आपको काम मिल जायेगा। इंटरव्यू (साक्षत्कार) में सफलता प्राप्त करने की साधना : सामग्री : स्फटिक मणिमाला (108 मनकों की) माला : उपर्युक्त समय : दिन का कोई भी समय आसन : सफेद आसन दिशा : पूर्व दिशा, इक्कीस बार प्रतिदिन अवधि : ग्यारह दिन मंत्र : ऊँ ह्रीं वाग्वादिनी भगवती मम कार्यसिद्धि करि करि फट् स्वाहा। प्रयोग : यह प्रयोग स्फटिक मणिमाला पर किया जाता है। सामने पीला वस्त्र बिछाकर उस पर 108 मनकों की मंत्र सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठा युक्त स्फटिक मणिमाला रख दें और केसर से उसका पूजन करें। सामने अगरबत्ती या दीपक जला दें। यह दीपक शुद्ध घृत का हो। फिर उपर्युक्त मंत्र का इक्कीस बार उच्चारण करें। इस प्रकार 11 दिन तक करने से वह माला 'विजय माला' में परिवर्तित हो जाती है। जब किसी इंटरव्यू या साक्षात्कार में जायें तो उस माला को बुशर्ट अथवा कुर्ते के नीचे पहनकर जायें, ऐसा करने पर साक्षात्कार में अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है। नौकरी प्राप्त करने का सुलेमानी मंत्र : सामग्री : जलपात्र, तेल का दीपक, लोवान, धूप आदि। माला : मूंगे की माला समय : दिन का कोई भी समय आसन : किसी भी प्रकार का आसन दिशा : पूर्व दिशा जप संखया : नित्य ग्यारह सौ अवधि : चालीस दिन मंत्र : ऊँ या मुहम्मद दीन हजराफील भहक अल्लाह हो। यह मुसलमानी प्रयोग है तथा किसी भी शुक्रवार को प्रारंभ किया जा सकता है। प्रातः उठकर बिना किसी से बातचीत किये सवा पाव उड़द के आटे की रोटी बनायें और उसे आंच पर अपने हाथों से सेकें इसके बाद रुमाल पर रोटी के चार टुकड़े करके रख दें। उसमें से एक टुकड़े का े नदी या तालाब में ले जाकर डाल दें, जिससे कि मछलियां उनको खा जायें। शेष रोटी के जो तीन भाग बचेंगे, उनमें से एक भाग कुत्ते को खिला दें, दूसरा भाग कौवे को खिला दें और तीसरा भाग रास्ते में फेंक दें। इस प्रकार चालीस दिन नित्य प्रयोग करें, तो मनोवांछित नौकरी या रोजी प्राप्त होती है और आगे जीवन में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं आती है। नौकरी प्राप्त करने हेतु ताबीज : जो पढ़-लिखकर भी नौकरी न पा सके हों, वे निम्नलिखित यंत्र को कागज पर अनाज की कलम द्वारा केसर से लिखकर अपने सामने रखें और उपास्य देव का ध्यान करके बाद में ताबीज में रखकर या भुजा में बांध लें। ऐसा करने से नौकरी पाने के लिए आने वाली रुकावटें कम हो जायेंगी। रोजगार प्राप्ति हेतु तांत्रिक टोटका : बेकार (बैठे) नौजवानों के लिए नौकरी दिलाने अथवा उनका काम-धंधा जमाने में यह ताबीज रामबाण के सदृश अचूक सिद्ध होता है। उपर्युक्त यंत्र को मंगलवार या गुरुवार के दिन से लिखना शुरु करें। भोजपत्र पर अष्टगंध स्याही से अनार की कलम द्वारा लिखें। प्रतिदिन दो सौ एक यंत्र लिखें। जब पांच हजार यंत्र लिखे जा चुके, तो आखिरी यंत्र को स्वर्ण या तांबे के ताबीज में बंद करें और ताबीज को दाहिनी भुजा में बांध लें। शेष यंत्रों को आटे की गोलियों में बंद करके दरिया में वहा दें। भगवती लक्ष्मी की कृपा और भरपूर धन प्राप्त करने हेतु अनेक टोने-टोटके, गंडे-ताबीज, अंगूठियां और रत्न ही नहीं, बल्कि बड़ी-बड़ी तांत्रिक साधनाएं तक प्राचीनकाल से ही संपूर्ण विश्व में प्रचलित रही हैं। हमारे धर्म में दीपावली पूजन के साथ कई प्रकार के यंत्रों, पूजाओं और मंत्रों की साधना प्राचीनकाल से होती रही है, तो इस्लाम में भी इस प्रकार के अनेक नक्श और ताबीज हैं। इनमें से पूर्ण प्रभावशाली और साधना में एकदम आसान कुछ टोने-टोटके और यंत्र-मंत्र इस प्रकार हैं- कुछ शक्तिशाली टोटके : दान करने से धन घटता नहीं, बल्कि जितना देते हैं उसका दस गुना ईश्वर हमें दे देता है। आयुर्वेद में वर्णित 'त्रिफला' का एक अंग 'बहेड़ा' सहज सुलभ फल है। इसका पेड़ बहुत बड़ा, महुआ के पेड़ जैसा होता है। रवि-पुष्य के दिन इसकी जड़ और पत्ते लाकर पूजा करें, तत्पश्चात् इन्हें लाल वस्त्र में बांधकर भंडार, तिजोरी या बक्से में रख दें। यह टोटका भी बहुत समृद्धिशाली है। पुष्य-नक्षत्र के दिन शंखपुष्पी की जड़ घर लाकर, इसे देव-प्रतिमाओं की भांति पूजें और तदंतर चांदी की डिब्बी में प्रतिष्ठित करके, उस डिब्बी को धन की पेटी, भंडार घर अथवा बक्स व तिजोरी में रख दें। यह टोटका लक्ष्मीजी की कृपा कराने में अत्यंत समर्थ प्रमाणित होता है। धन प्राप्ति के लिए दस नमस्कार मंत्र : इनमें से किसी भी एक मंत्र का चयन करके सुबह, दोपहर और रात्रि को सोते समय पांच-पांच बार नियम से उसका स्तवन करें। मातेश्वरी लक्ष्मीजी आप पर परम कृपालु बनी रहेंगी। ऊँ धनाय नमः, ऊँ धनाय नमो नमः, ऊँ लक्ष्मी नमः, ऊँ लक्ष्मी नमो नमः, ऊँ लक्ष्मी नारायण नमः, ऊँ नारायण नमो नमः, ऊँ नारायण नमः, ऊँ प्राप्ताय नमः, ऊँ प्राप्ताय नमो नमः, ऊँ लक्ष्मी नारायण नमो नमः धन प्राप्ति हेतु ताबीज : नीचे चार आसान यंत्र दिये जा रहे हैं। इनमें से किसी भी एक को कागज पर स्याही से अथवा भोज पत्र पर अष्टगंध से अंकित करके धूप-दीप से पूजा करें। चांदी के ताबीज में यंत्र रखकर मातेश्वरी का ध्यान करते हुए इसे गले में धारण करें और ऊपर दिये गये किसी मंत्र का नियम से स्तवन भी करते रहें। इन सामान्य यंत्रों और यंत्रों के पश्चात् आगे परम शक्तिशाली मंत्र, यंत्र और तांत्रिक प्रयोग इस प्रकार से हैं- ऊँ लक्ष्मी वं, श्री कमला धरं स्वाहा। इस मंत्र की सिद्धि 1 लाख बीस हजार मंत्र जप से होती है। इसका शुभारंभ बैशाख मास में स्वाति नक्षत्र में करें, तो उत्तम रहेगा। जप के बाद हवन भी करें। ऊँ सच्चिदा एकी ब्रह्म ह्रीं सच्चिदी क्रीं ब्रह्म। इस मंत्र के 1 लाख बीस हजार जप से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। ऊँ ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्थिराओं। इसकी सिद्धि 110 मंत्र नित्य जपने से 41 दिनों में संपन्न होती है। माला मोती की और आसन काली मृगछाला का होना चाहिए। इसकी साधना कांचनी वृक्ष के नीचे करनी चाहिए। ऊँ नमो ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी ममगृहे धनं चिंता दूरं करोति स्वाहा। प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर 1 माला (108 मंत्र) का नित्य जप करें तो लक्ष्मी की सिद्धि होती है। ऊँ नमो पद्मावती पधनतने लक्ष्मी दायिनी वाछांभूत-प्रेत विन्ध्यवासिनी सर्व शत्रुसंहारिणी दुर्जन मोहिनी ऋद्धि-सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा। ऊँ नमः क्लीं श्रीं पद्मावत्यै नमः। इस यंत्र को सिद्ध करने के लिए साधना के समय लाल वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए और पूजा में प्रयुक्त होने वाली सभी पूजन-सामग्री को रक्त वर्ण का बनाना होता है। इसकी साधना अर्द्धरात्रि के समय करनी पड़ती है। इसका शुभारंभ शनिवार या रविवार से उपयुक्त रहता है। 108 बार नित्य प्रति जप करें। छारछबीला, गोरोचन, कपूर, गुग्गुल और कचरी को मिलाकर मटर के बराबर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। जप के बाद नित्य प्रति इन गोलियों से 108 आहुतियां देकर हवन करना चाहिए। इस साधना को 22 दिन तक निरंतर करना चाहिए। तभी लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है। ऊँ नमो पद्मावती पद्मनेत्र वज्र बज्रांकुश प्रत्यक्षं भवति। इस मंत्र की सिद्धि के लिए लगातार 21 दिन तक साधना के समय मिट्टी का दीपक बनाकर जलाएं। जप के लिए मिट्टी के मनकों की माला बनायें और नित्य प्रति 1 माला अर्थात 108 मंत्र का श्रद्धापूर्वक जप किया जाये तो लक्ष्मी देवी प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। ऊँ नमः भगवते पद्मपद्मात्य ऊँ पूर्वाय दक्षिणाय पश्चिमाय उत्तराय अन्नपूर्ण स्थ सर्व जन वश्यं करोति स्वाहा। प्रातःकाल स्नानादि सभी कार्यों से निवृत्त होकर 108 मंत्र का जप करें और अपनी दुकान अथवा कारखाने में चारों कोनों में 10-10 बार मंत्र का उच्चारण करते हुए फूंक मारें। इससे व्यापार की परिस्थ्तियां अनुकूल हो जायेंगी और हानि के स्थान पर लाभ की दृष्टि होने लगेगी। ऊँ नमः काली कंकाली महाकाली मुख सुंदर जिये व्याली चार बीर भैरों चौरासी शत तो पूजूं मानये मिठाई अब बोलो काली की दुहाई। इस मंत्र को सिद्ध करने के बाद प्रातः काल स्नान, पूजन, अर्चन आदि से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुख करके बैठें और सुविधा अनुसार 7, 14, 21, 28, 35, 42 अथवा 48 मंत्रों का जप करें। इस प्रक्रिया से थोड़े दिनों में नौकरी अथवा व्यापार के शुभारंभ की व्यवस्था हो जायेगी। ऊँ नमः भगवती पद्मावती सर्वजन मोहिनी सर्वकार्य वरदायिनी मम विकट संकटहारिणी मम मनोरथ पूरणी मम शोक विनाशिनी नमः पद्मावत्यै नमः। इस मंत्र की सिद्धि करने के बाद मंत्र का प्रयोग किया जाये तो नौकरी अथवा व्यापार की व्यवस्था हो जाएगी। उसमें आने वाले विघ्न दूर हो जायेंगे। धूप-दीप आदि से पूजन करके प्रातः, दोपहर और सांयकाल तीनों संध्याओं में एक-एक माला मंत्र जप करें। धन प्राप्ति हेतु तांत्रिक मंत्र : यह मंत्र महत्वपूर्ण है। इस मंत्र का जप अर्द्धरात्रि को किया जाता है। यह साधना 22 दिन की है और नित्य एक माला जप होना चाहिए। यदि शनिवार या रविवार से इस प्रयोग को प्रारंभ किया जाये तो उचित रहता है। इसमें व्यक्ति को लाल वस्त्र पहनने चाहिए और पूजा में प्रयुक्त सभी सामान को रंग लेना चाहिए। दीपावली के दिन भी इस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है और कहते हैं कि यदि दीपावली की रात्रि को इस मंत्र की 21 माला जप करें तो उसके व्यापार में उन्नति एवं आर्थिक सफलता प्राप्त होती है। मंत्र : ऊँ नमो पदमावती पद्मालये लक्ष्मीदायिनी वांछाभूत प्रेत विन्ध्य वासिनी सर्व शत्रु संहारिणी दुर्जन मोहिनी ऋद्धि-सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा। ऊँ क्लीं श्रीं पद्मावत्यै नमः। जब अनुष्ठान पूरा हो जाये तो साधक को चाहिए कि वह नित्य इसकी एक माला फेरे। ऐसा करने पर उसके आगे के जीवन में में निरंतर उन्नति होती रहती है। धन प्राप्ति का साबर मंत्र : नित्य प्रातःकाल दंत धावन करने के बाद इस मंत्र का 108 बार पाठ करने से व्यापार या किसी अनुकूल तरीके से धन प्राप्ति होती है। मंत्र : ऊँ ह्रां श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी ममगृहे धनं पूरय चिन्ताम् तूरय स्वाहा।