Tuesday 31 May 2011

ज्‍योतिष की जरूरत क्‍यों ?




“यह  सृष्टि  ईश्‍वर  की  बनाई  है। चाहे कपिल  मुनि  के  सांख्‍य  दर्शन  की  बात करें  या 
शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत की। हमें ईश्‍वरवादी धर्म एक बात स्‍पष्‍ट कर देते हैं कि जो
 कुछ हो रहा है वह ईश्‍वर द्वारा तय है। सबकुछ पूर्व नियत है। कोई घटना या मनुष्‍य के
दिमाग में उपजा विचार तक ईश्‍वर द्वारा पूर्व निर्धारित किया गया है। सृष्टि का एक भाग
 बनकर हम केवल उसे जी रहे हैं।
ऐसे में इच्‍छा स्‍वातंत्रय (freedom of will) की कितनी संभावना शेष रह जाती है, यह सोचने
 का विषय है। क्‍योंकि या तो सबकुछ पूर्व नियत हो सकता है या हमारे कर्म से बदलाव किया
 जा सकता है। अगर कर्म से पत्‍ता भी हिलाया जा सकता है, जो ईश्‍वर की इच्‍छा नहीं है तो
 सबकुछ परिवर्तित किया जा सकता है। यह कर्म आधारित सिद्धांत बन जाएगा। यानि जैसा
 कर्म करेंगे वैसा भोगेंगे।
तो कुछ भी पूर्व नियत नहीं रह जाता है। इस बात का यह अर्थ हुआ कि ज्‍योतिष भी समाप्‍त
 हो जाएगी। अब ग्रह नक्षत्रों के बजाय यह देखना होगा कि जातक ने अब तक क्‍या कर्म किए हैं।
 कुछ प्रश्‍न फिर अनुत्‍तरित रह जाते हैं कि जातक की पैदा होने की तिथि, परस्थिति, माता-पिता, परिजन आदि उसका खुद का चुनाव नहीं हैं, ना ही अन्‍य परिस्थितियों का चुनाव वह कर पाता है। इसका जवाब फिर से प्रारब्‍ध में आ जुड़ता है।
अगर सबकुछ पूर्व नियत है तो हमें कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं है या जो कर रहे हैं उसका
 पुण्‍य और पाप भी हमारा नहीं बल्कि सृष्टिकर्ता का ही हुआ और अगर कुछ भी पूर्व नियत नहीं है
 तो बिना चुनाव के हमें मिले जीवन के खेल के पत्‍तों का सवाल अनुत्‍तरित रह जाता है।
अब तीसरी स्थिति सामने आती है कि ईश्‍वर ने कुछ पूर्व में ही नियत कर रखा है और कुछ इच्‍छा स्‍वातंत्रय की संभावना शेष रखी है। यहां यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि हमें कितनी स्‍वतंत्रता मिली हुई है।”

Pandit Gaurav Acharya (astrologer)
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