विधाता हमारे सभी कर्मों को देखता है. हमारे कर्मों के अनुसार ही वह हमारे जीवन का लेख लिखता है. विधाता का लेख हम कुण्डली से जान पाते हैं. कुन्डली में शुभ योगों की मौजूदगी हमारे शुभ कर्मों का फल होता है और अशुभ योग बुरे कर्मों का फल. कालसर्प दोष (कालसर्प दोष) भी ऐसा ही योग है जो पूर्व जीवन में किये गये हमारे कर्मों से इस जन्म में हमारी कुण्डली में निर्मित होता है. इस योग में मूल रूप से दो ग्रह राहु केतु की भूमिका प्रमुख होती है. इन्हीं दोनों ग्रहों के प्रभाव से कालसर्प दोष बनता है.
राहु केतु और काल सर्प दोष (Rahu, Ketu and Kalsarp Dosha)
राहु केतु अशुभ और पीड़ादायक ग्रह माने जाते हैं. धर्मशास्त्र एवं ज्योतिषशास्त्र में कई स्थान पर यह उल्लेख आया है कि यह दोनों ग्रह भले दो हैं परंतु वास्तव में यह एक ही शरीर के दो भाग हैं. इनका शरीर सर्प के आकार का है राहु जिसका सिर है और केतु पूंछ. अंग्रेजी भाषा में राहु को ड्रैगन हेड और केतु को ड्रैगन टेल कहा गया है. ज्योतिषशास्त्र में जिन नौ ग्रहों की चर्चा की जाती है उनमें राहु और केतु ही मात्र ऐसे ग्रह हैं जो सदैव वक्री चाल चलते हैं शेष सभी ग्रह मार्गी और वक्री होते रहते हैं.
सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि ये सभी ग्रह जब गोचर में भ्रमण करते हुए राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं उस समय जिस व्यक्ति का जन्म होता है उसकी कुण्डली में कालसर्प योग बनता है. यह योग अशुभ फलदायक होने के कारण कालसर्प दोष कहलाता है. इस दोष की चर्चा जैमिनी, पराशर, वराहमिहिर, बादरायण, गर्ग एवं बादरायण ऋषियों ने भी किया है. राहु केतु के बीच में आ जाने के कारण शेष सातों ग्रहों की शक्ति कमज़ोर पड़ जाती है जिससे वह अपना पूर्ण शुभ फल नहीं दे पाते हैं.
इस दोष के विषय में विद्वानों ने यह भी कहा है कि जब सातों ग्रहों में से कोई भी एक या दो ग्रह राहु और केतु के चक्र से बाहर निकल आते हैं तब कालसर्प योग नहीं बनता है. लेकिन, इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि जो ग्रह राहु केतु के चक्र से बाहर हों उनका अंश राहु केतु से अधिक होना चाहिए। यदि, उन ग्रहों का अंश राहु केतु से कम है तो कुण्डली कालसर्प दोष से प्रभावित ही मानी जाएगी. कालसर्प दोष के विषय में कुछ ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है कि कालसर्प दोष की जांच करते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जन्मपत्री में यदि राहु केतु द्वितीय, षष्टम, अष्टम या एकादश में हो और सभी एक ही तरफ एक गोलर्द्ध में हो तब कालसर्प दोष मानना चाहिए. जबकि, सातों ग्रहों एक ही ओर इसके विपरीत दिशा में हों तब कालसर्प दोष की बजाय अर्धचन्द्र योग बनता है.
कालसर्प दोष निर्माण के विषय में आधुनिक मत
आधुनिक समय के कुछ ज्योतिषी इस योग के निर्माण के विषय में यह भी कहते हैं कि शुभ ग्रहों का कम अंशों पर होना, शुभ ग्रहों का नीच स्थिति में होना, पाप ग्रहों से दृष्ट होना, केन्द्र एवं त्रिकोण में स्थित ग्रहों का किसी भी भी तरह से अशुभ होना, शुभ ग्रहों का अशुभ ग्रहों से दृष्ट होना भी कालसर्प दोष के समान ही फल देता हे अत: इन्हें भी कालसर्प दोष के रूप में मानना चाहिए.
राहु केतु और काल सर्प दोष (Rahu, Ketu and Kalsarp Dosha)
राहु केतु अशुभ और पीड़ादायक ग्रह माने जाते हैं. धर्मशास्त्र एवं ज्योतिषशास्त्र में कई स्थान पर यह उल्लेख आया है कि यह दोनों ग्रह भले दो हैं परंतु वास्तव में यह एक ही शरीर के दो भाग हैं. इनका शरीर सर्प के आकार का है राहु जिसका सिर है और केतु पूंछ. अंग्रेजी भाषा में राहु को ड्रैगन हेड और केतु को ड्रैगन टेल कहा गया है. ज्योतिषशास्त्र में जिन नौ ग्रहों की चर्चा की जाती है उनमें राहु और केतु ही मात्र ऐसे ग्रह हैं जो सदैव वक्री चाल चलते हैं शेष सभी ग्रह मार्गी और वक्री होते रहते हैं.
सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि ये सभी ग्रह जब गोचर में भ्रमण करते हुए राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं उस समय जिस व्यक्ति का जन्म होता है उसकी कुण्डली में कालसर्प योग बनता है. यह योग अशुभ फलदायक होने के कारण कालसर्प दोष कहलाता है. इस दोष की चर्चा जैमिनी, पराशर, वराहमिहिर, बादरायण, गर्ग एवं बादरायण ऋषियों ने भी किया है. राहु केतु के बीच में आ जाने के कारण शेष सातों ग्रहों की शक्ति कमज़ोर पड़ जाती है जिससे वह अपना पूर्ण शुभ फल नहीं दे पाते हैं.
अपनी कुंडली में कालसर्प दोष चैक कीजिये "Check Kalsarp Dosha in Your Kundli" एकदम फ्री
इस दोष के विषय में विद्वानों ने यह भी कहा है कि जब सातों ग्रहों में से कोई भी एक या दो ग्रह राहु और केतु के चक्र से बाहर निकल आते हैं तब कालसर्प योग नहीं बनता है. लेकिन, इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि जो ग्रह राहु केतु के चक्र से बाहर हों उनका अंश राहु केतु से अधिक होना चाहिए। यदि, उन ग्रहों का अंश राहु केतु से कम है तो कुण्डली कालसर्प दोष से प्रभावित ही मानी जाएगी. कालसर्प दोष के विषय में कुछ ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है कि कालसर्प दोष की जांच करते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जन्मपत्री में यदि राहु केतु द्वितीय, षष्टम, अष्टम या एकादश में हो और सभी एक ही तरफ एक गोलर्द्ध में हो तब कालसर्प दोष मानना चाहिए. जबकि, सातों ग्रहों एक ही ओर इसके विपरीत दिशा में हों तब कालसर्प दोष की बजाय अर्धचन्द्र योग बनता है.
कालसर्प दोष निर्माण के विषय में आधुनिक मत
आधुनिक समय के कुछ ज्योतिषी इस योग के निर्माण के विषय में यह भी कहते हैं कि शुभ ग्रहों का कम अंशों पर होना, शुभ ग्रहों का नीच स्थिति में होना, पाप ग्रहों से दृष्ट होना, केन्द्र एवं त्रिकोण में स्थित ग्रहों का किसी भी भी तरह से अशुभ होना, शुभ ग्रहों का अशुभ ग्रहों से दृष्ट होना भी कालसर्प दोष के समान ही फल देता हे अत: इन्हें भी कालसर्प दोष के रूप में मानना चाहिए.
No comments:
Post a Comment