भावी दम्पति का वैवाहिक जीवन वैचारेक्य, सुख समृ्द्धि एवं वंशवृ्द्धि से परिपूर्ण हो. इसके लिए हिन्दु वैवाहिक परम्परा एवं मान्यता के अनुसार वर-कन्या की जन्मकुंडली का सम्यक मिलान किया जाता है. जिसके आधार पर यह निर्धारित तथा सुनिश्चित किया जाता है कि विवाहोपरांत दम्पति के मध्य मैत्री, सामंजस्य तथा सुख-समृ्द्धि की कैसी स्थिति रहेगी. विवाह से पूर्व, जन्मपत्रिका मिलान द्वारा भावी वैवाहिक जीवन का आंकलन करना तो अपने आप में एक दुष्कर ज्योतिषीय प्रक्रिया है. उस प्रक्रिया के बारे में यहाँ लिखने का तो कोई औचित्य ही नहीं... इस पोस्ट में तो मिलान सम्बंधी एक दो बातों पर प्रकाश डालना ही हमारा उदेश्य है. इस बात को तो ज्योतिष की नाममात्र जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी जानता है कि फलित ज्योतिष में प्रमुखत: जन्मलग्न की ही प्रधानता होती है.लेकिन विवाह हेतु संभावित वर-वधू की जन्मकुंडली मिलान करते समय जन्मराशी ही मेलापक का मूल आधार बनती है.
जन्मकालीन चन्द्रमा की नक्षत्र स्थिति के आधार पर मेलापक सम्बंधी निर्णय लिए जाते हैं. लेकिन आजकल ऎसा भी बहुत देखने में आता है कि जहाँ पर वर-कन्या की जन्मकुंडलियाँ सुलभ नहीं होती अथवा कहें कि जन्मविवरण (जन्मतिथि/समय/स्थान) के अभाव में जन्मपत्रिका का निर्माण संभव नहीं है तो वहाँ पर, ज्योतिषी द्वारा प्रचलित नाम के प्रथम अक्षर को आधार मानकर जन्मनक्षत्र का निर्धारण करके मिलान का निर्णय ले लिया जाता है. वास्तव में यह एक पूरी तरह से कामचलाऊ आधार है,जिसके लिए यदि साधारण भाषा मे "जुगाड" शब्द का प्रयोग किया जाए तो शायद ज्यादा सही रहेगा. क्यों कि इसे किसी भी तरीके से न तो शास्त्र सम्मत कहा जा सकता है और न ही तर्कसम्मत. मेरा अपना निजी मत तो ये है कि अगर वर-कन्या की जन्मपत्रिका नहीं है या उनमें से किसी का जन्मविवरण उपलब्ध नहीं है तो फिर इस प्रकार ऊलजलूल अतार्किक तरीके अपनाकर मिलान का स्वांग रचने से तो कहीं बेहतर है कि विवाह बिना मिलान किए ही कर लेना चाहिए......इस प्रकार के तरीके अपनाकर किसी को भ्रमित कर धन कमाने वाले ज्योतिषियों द्वारा इस विद्या के व्यापारिक दुरूपयोग के चलते ही ज्योतिष की विश्वसीनता पर बारबार प्रश्नचिन्ह खडे किए जाते रहे हैं.
दूसरी बात, वो ये कि आजकल जन्मकुंडली मिलान वगैरह के लिए भी कम्पयूटर का ही सहारा लिया जाने लगा है. खैर इसमें कोई बुराई नहीं बल्कि ये तो अच्छी बात है क्यों कि कम्पयूटर के इस्तेमाल से गलती की कैसी भी कोई संभावना नहीं रहती...... परन्तु अन्तिम निर्णय तो विद्वान ज्योतिषी को ही करना होता है. कम्पयूटर का कार्य है सिर्फ गणित(Calculations) करना. जन्मकुंडली देखना, उसके बारे में अन्तिम रूप से सारांशत: व्यक्तिगत रूचि लेकर किसी निर्णय पर पहुँचने का कार्य ज्योतिष के ज्ञाता का है. कम्पयूटर मानव कार्यों का एक सर्वोतम सहायक जरूर है, मानव नहीं.....इसलिए कम्पयूटर का उपयोग करें तो सिर्फ जन्मकुंडली निर्माण हेतु....न कि कम्पयूटर द्वारा दर्शाई गई गुण मिलान संख्या को आधार मानकर कोई अंतिम निर्णय लिया जाए....
जन्मकालीन चन्द्रमा की नक्षत्र स्थिति के आधार पर मेलापक सम्बंधी निर्णय लिए जाते हैं. लेकिन आजकल ऎसा भी बहुत देखने में आता है कि जहाँ पर वर-कन्या की जन्मकुंडलियाँ सुलभ नहीं होती अथवा कहें कि जन्मविवरण (जन्मतिथि/समय/स्थान) के अभाव में जन्मपत्रिका का निर्माण संभव नहीं है तो वहाँ पर, ज्योतिषी द्वारा प्रचलित नाम के प्रथम अक्षर को आधार मानकर जन्मनक्षत्र का निर्धारण करके मिलान का निर्णय ले लिया जाता है. वास्तव में यह एक पूरी तरह से कामचलाऊ आधार है,जिसके लिए यदि साधारण भाषा मे "जुगाड" शब्द का प्रयोग किया जाए तो शायद ज्यादा सही रहेगा. क्यों कि इसे किसी भी तरीके से न तो शास्त्र सम्मत कहा जा सकता है और न ही तर्कसम्मत. मेरा अपना निजी मत तो ये है कि अगर वर-कन्या की जन्मपत्रिका नहीं है या उनमें से किसी का जन्मविवरण उपलब्ध नहीं है तो फिर इस प्रकार ऊलजलूल अतार्किक तरीके अपनाकर मिलान का स्वांग रचने से तो कहीं बेहतर है कि विवाह बिना मिलान किए ही कर लेना चाहिए......इस प्रकार के तरीके अपनाकर किसी को भ्रमित कर धन कमाने वाले ज्योतिषियों द्वारा इस विद्या के व्यापारिक दुरूपयोग के चलते ही ज्योतिष की विश्वसीनता पर बारबार प्रश्नचिन्ह खडे किए जाते रहे हैं.
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Pandit Gaurav Acharya (astrologer)
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ludhiana ,punjab
mobile:99141-44100
98148-44100
email:panditgauravacharya@gmail.com
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